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हरिहरपुरी के सोरठे




हरिहरपुरी के सोरठे


जब आता संतोष, कामना मिटती जाती।

सदा आत्म को पोष,आशुतोष का भाव यह।।


अपना जीवन पाल, सदा रहो सत्कर्म रत।

सत्कर्मों का हाल, सहज शुभप्रद सुखदायी।।


मन से कभी न हार, रहे मनोबल अति प्रबल।

मन तन का श्रृंगार, यदि यह पावन शिवमुखी।।


इन्द्रिय को ललकार, शुद्ध बुद्धि से काम कर।

ईर्ष्या को धिक्कार,दुश्मन है यह प्रेम का।।


करता जो स्वीकार,गलत राह को हॄदय से।

बन जाता आधार, वह अपराधी जगत का।।


मन में अतिशय लोभ, कारण बनता नाश का।

होता जब है क्षोभ,सिर धुन-धुन कर पटकता।।


तन-मन-उर अरु बुद्धि,करो जरूरी संतुलन।

जहाँ ध्यान में शुद्धि,वहाँ व्यवस्था स्वस्थ प्रिय।।





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2 Comments

Abhilasha deshpande

12-Jan-2023 05:44 PM

मन के भाव को अच्छे से दर्शाया है। अद्वितीय रचना

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अदिति झा

12-Jan-2023 04:23 PM

Nice 👍🏼

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